औरों से मिलनें वाले सुख एवं अपनों से मिलनें वाले सुख को एक तराजू में तौलो
मनुष्य सबको गुलाम बन कर क्यों रखना चाहता है?
मनुष्य के ज्ञान – विज्ञान की दिशा परमात्मा को भी गुलाम बनानें को है , क्यों ?
अन्य जीवों की तुलना में मनुष्यों की पलकें अधिक क्यों झपकती हैं?
अन्य जीव तीन मार्गी हैं[काम+भोजन+सुरक्षा]और मनुष्य चार मार्गी[काम,राम,भोजन,सुरक्षा]
भोगी उस चौराहे पर है जहाँ से चार मार्ग निकलते हैं [ काम , राम , भोजन , सुरक्षा ] और मार्गों के चयन में भ्रमित रहता है
योगी का मार्ग पगडण्डी है जो सीधे भोग से निकल कर परम में पहुंचता है जिस पर कोई चौराहा नहीं
भोगी भोग को भगवान समझता है और योगी की बुद्धि में दो नहीं एक[प्रभु]बसता है
भोगी का सम्बन्ध भगवान से मात्र भोग प्राप्ति के लिए होता है और योगी कामना-संकल्प रहित प्रभु में बसा होता है
राम में कम की तलाश है भोगी की और योगी काम को राम का मार्ग समझता है [ गीता - 7.11 धर्माविरुद्धो भूतेषु कामः अस्मि ]
खोज की यात्रा जितनी लंबी होती है मनुष्य उतना बेचैन रहता है और जब एक खोज समाप्त होती है, दूसरी प्रारम्भ भी हो जाती है
====ओम्======
No comments:
Post a Comment