कर्म रहित कोई जीव धारी एक पल भी नहीं रह सकता[गीता- 18.11 ]
भूतभावः उद्भवकरः विसर्गः इति कर्मः[गीत –8.3 ]
[जीव जिससे भावातीत हो सके वह कर्म है]
कर्म कर्ता मनुष्य या जीव नहीं उनके अंदर तीन गुणों का समीकरण होते हैं
मनुष्य में जो गुण जिस समय प्रभावी रहता है वह उस प्रकार का काम करता है
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में ऐसा कोई नहीं जी पर तीन गुणों का प्रभाव न पड़ता हो[गीता- 18.40 ]
थर्मामीटर में जैसे ताप के प्रभाव में पारा ऊपर नीचे होता रहता है वैसे तीन गुण मनुष्य के अंदर उठते - बैठते रहते हैं [ सोच , खान – पान , रहन – सहन के आधार पर ]
सात्विक गुण ज्ञान की ओर ले जाता है
राजस गुण भोग से बाधता है
तामस गुण मोह एवं भय का जन्म दाता है
तीन गुण स्वभाव का निर्माण करते हैं
स्वभाव से कर्म होता है
कर्म से सुख – दुःख का अनुभव होता है
किसी के कर्म एवं कर्म – फल की रचना प्रभु आधारित नहीं है[गीता- 5.14 ]
मनुष्य जब कर्म करता है तब स्वयं करता समझता है और जब परिणाम गलत होते है तब प्रभु को जिम्मेवार समझता है , क्या है यह राजनीति वह भी प्रभु से ?
परिणाम उत्तम तो उस कर्म को करनें वाला मैं हूँ और यदि परिणाम अशुभ हुआ तो वह प्रभु के कारण हुआ,यह है मनुष्य की गणित
====ओम्=======
1 comment:
आभार
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