दर्द , परम - धाम एवं नर्क , दोनों का द्वार है ।
दर्द में रुक जाना नर्क की ओर ले जाता है और दर्द की मैत्री परम - धाम की यात्रा है ।
मीरा में दर्द उठा , मीरा उस दर्द को स्वीकारा , जीवन भर उसके साथ रही और कहते हैं
मीरा द्वारिका धीश की मूर्ति में समा गयी । कहानियाँ अपनें में परम सत्य को छिपाए होती
हैं , उन सत्यों को खोजना ही साधना है ।
कहानियो को मनोरंजन का साधन बनाना नर्क की ओर की यात्रा है और कहानियों में
सत्य को खोजना ही परमात्मा की खोज है ।
कहानियो का एक छोर नर्क की ओर होता है और दूसरा छोर निर्वाण की ओर इशारा करता है ।
मीरा [1498 -1546] नानक [ 1469 -1539] कबीर [ 1398 -1518] भारत भूमि पर एक साथ
20 वर्षों तक रहे मीरा अपनें दर्द को मथुरा से द्वारिका तक फैलाया,उनका केन्द्र था कन्हैया ।
मीरा अपनें दर्द में प्रभु को महशूश किया और दर्द तो बाहर रह गया पर मीरा प्रभु मे समा गयी /
कबीर अपनी भूख की दर्द को राम से जोड़ कर काशी के अहंकारी तर्क - शास्त्रिओं के मध्य
सरल भाषा में वेदान्त की ऊर्जा को भरना चाहा और लगभग एक सौ बीस सालों तक लोगों
को खूब पियाया वेदान्त /
नानक कहते हैं , नानक दुखिया सब संसार और अपनें इस मूल - मंत्र के साथ पंजाब से करबला ,
मक्का और जेरुसलेम तक की यात्रा करते रहे ।
नानक - कबीर के दर्द के केन्द्र राम थे और मीरा का केन्द्र कन्हैया थे ,
आप के दर्द का केन्द्र क्या है ?
वृन्दाबन में जब मीरा का रहना सम्भव न हो सका तब उनको द्वारका में शरण लेनी पड़ी थी ।
मीरा के आखिरी वक्त के समय उनके खानदान का एक सदस्य मेवार का राजा था जिस को
मीरा से बहुत था । राजा अपनें सेना का एक दल द्वारका मीरा को लेने केलिए भेजा सेनापति के
आग्रह के सामनें मीरा ना न कह पायी और बोली-- मैं चलूंगी लेकिन पहले कन्हैया से पूछ तो लू तबतक आप लोग यही विश्राम करें । कहानी कहती है की मीरा गयी कन्हैया के सामनें और कन्यैया की मूर्ती में समा गयी ।
आप क्या समझ रहे हैं , क्या यह बात सही है ? सही होनी ही चाहिए परम - भक्त
तो हर समय कन्हैया में रहता ही है , चाहे वह कन्हैया की मूर्ती हो या स्वयं कन्हैया /
मीरा का दर्द मीरा को परम - धाम में पहुंचाया और आप आप का दर्द आप को कहाँ ले जा रहा है ?
==== ॐ ======
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