- जहाँ न दिन है न रात ....
- जहाँ न सत् है न असत् .....
- जहाँ न मैं हैं न तूं .............
- जहाँ न काम है , न राम ....
- जहाँ न माया है , न काया .....
- जहाँ न आसमान है , न धरती .....
- जहाँ न पाप है न पुण्य .....
- जहाँ न अच्छा है न बुरा ....
- जानां न दुःख है , न सुख ....
- जहाँ न भय है न मोह ....
- जहाँ न कामना है , न क्रोध .....
- जहाँ न लोभ है , न अहँकार ....
आखिर ऐसे आयाम में क्या हो सकता है ?
- गुण तत्त्वों के परे निर्गुणी रहता है
- माया परे मायापति रहता है
- काम परे कामेश्वर रहता है
- सभीं भावों के परे भावातीत रहता है
फिर हम सब क्यों उसे समझनें में असमर्थ हैं ?
बहुत सीधा सा जबाब है :
हम जहाँ हैं , जहाँ रहते हैं , उसको समझनें की कोशिश करते ही नहीं
जिस घडी हमारी दृष्टि स्व पर केंद्रित हो जायेगी , उस घडी उसे समझनें की जरुरत न होगी , वह सर्वत्र नजर आनें ही लगेगा अतः पर से अपनी दृष्टि को स्व पर केंद्रित करनें का अभ्यास करना हमारे हाँथ में है और यह अभ्यास जिस घडी अभ्यास - योग में रूपांतरित हो उठेगा उस घडी हमें उसे खोजनें के किये काशी या काबा की यात्रा न करनी होगी , हम जहाँ भी होंगे वही काशी और काबा हो उठेगा /
प्रभु तो सर्वत्र है लेकिन ज्योंही भोग से हमारी दृष्टि प्रभु की ओर मुडती है , न जानें क्यों हमारी पलकें झपक जाती हैं और हम चूकते चले जा रहे हैं , काश ! वह घडी आये जब हमारी पलकें झपकें नही और हम प्रभु को अपनें नयनों में बसा सकें /
==== ओम् =====
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