Sunday, May 30, 2021

अष्टावक्र गीता अध्याय : 2 भाग - 1

 विदेह राजा जनक अध्याय - 1 में अष्टावक्र के  श्लोक : 2 - 20 तक को सुन चुके हैं । अध्याय - 1 का पहला श्लोक प्रश्न रूप में विदेह राजा जनक का ही है किसके माध्यम से वे जानना चाहते हैं कि वैराग्य , ज्ञान और मोक्ष कैसे प्राप्त किया जाता है ?

अध्याय - 1 के 19 श्लोक ( 2 से 20 तक ) में ऐसी कौन सी ऊर्जा रही होगी जो नाम से विदेह राजा जनक को आध्यात्मिक रूप से विदेह होने की अनुभूति जागृत कर दी ! , इस बात को पहले स्पष्ट किया जा चूका है ।

अब अष्टावक्र गीता में विदेह राजा जनक और बाल ऋषि अष्टावक्र की सोच में कोई अंतर नहीं दिखेगा ।  दोनों का केंद्रआत्मा - ब्रह्म है ।

अष्टावक्र गीता मूलतः वेदांत दर्शन आधारित है जो अद्वैत्य बादी दर्शन है । इस दर्शन में आत्मा , जीवात्मा , ब्रह्म , परमात्मा , भगवान , ईश्वर , महेश्वर जैसे अनेक शब्द दिखते हैं और इन सबका संकेत एक ऊर्जा की ओर है जिससे और जिसमें सभीं दृश्य वर्ग हैं ।  दृश्य वर्ग ( जिनको इन्द्रियां पकड़ सकती हैं ) को माया कहते हैं और द्रष्टा को ब्रह्म कहते हैं ।अब उतरते हैं अष्टावक्र गीता के अध्याय - 2 के प्रारंभिक श्लोकों में जहाँ ब्रह्म और ब्रह्म के ऊर्जा - कण आत्मा एवं स्वयं के सम्बन्ध के रहस्य को राजा जनक के शब्दों में देखा जा सकता है 👇



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