Tuesday, June 1, 2021

अष्टावक्र गीता अध्याय : 2 श्लोक : 13 - 17

विदेह मिथिलेश जनक अष्टावक्र के अध्याय : 1 के 19 सूत्रों को सुनते ही जग जाते हैं मानो वे जगने के लिए करवटे बदल रहे हों और एक धीमी आवाज से जग गए हों ।

अष्टावक्र के शिष्य विदेह मिथिलेश राजा जनक के सम्बन्ध में पहले विस्तार से बताया जा चुका है लेकिन स्मृति पटल पर उनकी उपस्थिति में अष्टावक्र गीता के सूत्रों को समझना , एक सहज साधना बन जाती है ।

राजा जनक वर्तमान के मनु जो सातवें मनु हैं ( कुल 14 मनु ब्रह्मा के एक दिन की अवधि में होते हैं ) , उनके जेष्ठ पुत्र इक्ष्वाकु के पुत्र निमि हैं । श्रीमद्भागवत पुराण : 9.13 में इनकी कथा दी गयी है ।

इन्होंने मिथिला पुरी बसाई थी ।  ये एक सिद्ध योगी थे । किसी कारण वश इनको देह छोड़ना पद गया था । उस समय इनका कोई उत्तराधिकारी पैदा नहीं हुआ था । मिथिला के आचार्य ब्राह्मण राजा निमि के उत्तराधिकारी हेतु उनके मृत देह से एक बालक को पैदा किये जिसे विदेह की उपाधि मिली । ये पहले विदेह मिथिलेश हुए ।

अब हम यह समझ कर नीचे दी गयी स्लाइड के श्लोकों को देखें कि ये सूत्र एक ब्रह्मवित् सिद्ध योगी के सूत्र हैं । अध्याय - 2 से अध्याय - 20 के मध्य चाहे राजा जनक के श्लोक हों या फिर बाल ऋषि अष्टावक्रबके सूत्र हों , दोनों ही आत्मा - ब्रह्म केंद्रित हैं । इस गीत में एक बात को बार - बार अलग - अलग ढंग से कहा गया है और इसके पीछे भी राज है । एक की बार - बार पुनरावृत्ति करना , अभ्यास योग कहलाता है और भ्रमणकारी चित्त एक पर केंद्रित हो कर वहीँ शांत हो जाता है। और अब ⏬ इस स्लाइड को देखते हैं ⬇️




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