Sunday, June 13, 2021

अष्टावक्र गीता सार - अध्याय : 18 श्लोक : 1 - 32

 अष्टावक्र गीता और श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय : 18 में एक समानता है ; दोनों सबसे बड़े अध्याय हैं । दोनों गीता के अध्याय : 18 में एक महत्वपूर्ण असमानता भी है ; श्रीमद्भगवद्गीता का अध्याय : 18 आखिरी अध्याय है और श्रोता अर्जुन के प्रश्न से प्रारम्भ होता है जबकि अष्टावक्र गीता अध्याय : 18 में विदेह राजा जनक चुप हैं और पूर्णरूपेण श्रोता हैं ।

🏵️ क्या है , श्रोतापन ? बुद्ध और महाबीर के समय श्रोतापन - माध्यम से एक नहीं अनेक साधक कैवल्य प्राप्त किये थे । जितने भी शास्त्र - पुराण हैं सबके सब श्रुतियाँ हैं ।

💐 श्रोतापन प्राप्ति पर श्रोता और वक्ता दो नहीं रहते , एक हो गए होते हैं । सुननेवाले / सुननेवाली के ह्रदय एवं वक्ता गुरु के हृदय में एकत्व स्थापित हो गया होता है ।  वह जो सुन रहा होता है , वह प्रश्न मुक्त हो चुका होता है , उसके सारे प्रश्न गिर गए होते हैं , उसका अहँकार श्रद्धा और समर्पण में बदल गया होता है और वह गुरु के शब्दों को सुनता नहीं होता , उन्हें पीता रहता है और पीते - पीते वह कब और कैसे समाधि में डूब जाता है , किसी को कोई आभाष नहीं हो पाता लेकिन यह समाधि सम्प्रज्ञात समाधि होती है अर्थात लक्ष्य नहीं एक माध्यम ही है।

👌 धीरे - धीरे समयांतर में सघन श्रोतापन उस साधक को असम्प्रज्ञात समाधि में पहुँचा देता है और इस निर्बीज समाधि से वह संयम में कदम रखता है जो कैवल्य का द्वार खोलता है । पुरुषार्थ मुक्त स्थिति , कैवल्य है जहाँ उसे मोक्ष प्रतीक्षा करता हुआ दिखता है ।

💐 अब आगे  गीता अध्याय : 18 के 32 श्लोकों के सार को दो स्लाइड्स में देखते हैं और समझते हैं - आत्मा से एकत्व स्थापित होने के रहस्यं को 👇


No comments: