Thursday, June 3, 2021

अष्टावक्र गीता सार अध्याय : 3 - 6

 💐 अष्टावक्र गीता अध्याय : 3 - 6 में क्रमशः 14 , 6 , 4 और 4 श्लोक हैं अर्थात कुल 28 श्लोक हैं ।

🌹 यहाँ इन 28 श्लोकों में अष्टावक्र जी अज्ञान , आसक्ति , काम , कामना , ममता आदि कर्म बंधनों के माध्यम से आत्मा और आत्मा बोध से ब्रह्मवित् का परिचय कराते हैं ।

🌷 आत्मा केंद्रित सब में अपने को और अपनें में सब को देखता है अर्थात उसके अंदर और बाहर एक ही आयाम हर पल बना रहता है जिसे समदर्शी - समभाव का आयाम कहते हैं और जिस आयाम में पहुंचने वाला सत्य - बोधी होता है । सत्य - बोधी और ब्रह्मवित् एक दूसरे के संबोधन हैं और तीन गुणों की साम्यावस्था को दर्शाते हैं । तीन गुणों की साम्यावस्था वाले अंतःकरण वाला योगी मायामुक्त होता है । मायामुक्त होना अर्थात कैवल्य की स्थिति की प्राप्ति । यह वह स्थिति है जहाँ साधक का चित्त पूर्ण रिक्त होता है और पारिजात मणि जैसा पारदर्शी और निर्मल होता है । इस स्थिति में भी अभीं संस्कार बचे रहते हैं जो आवागमन से मुक्त नहीं होने देते । लेकिन जब ध्यान , धारणा और समाधि की भूमि और दृढं होती है तब वह साधक संस्कार मुक्त चित्त वाला हो जाता है और उसकी आत्मा देह त्याग कर परम आत्मा में लीन हो जाती है जिसे मोक्ष कहते हैं ।

🌻अब देखते हैं स्लाइड के माध्यम से अष्टावक्र गीता के 04 अध्यायों को 👇




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