Wednesday, June 2, 2021

अष्टावक्र गीता अध्याय : 2 श्लोक : 18 - 25

 # विदेह राजा जनक के वचन स्पष्ट रूप से इनकी स्व - बोध की झलक दिखा रहे हैं । यहाँ राजा जनक जो कुछ भी बता रहे हैं , उसे सुन कौन रहा है ? अष्टावक्र जी सुन रहे हैं । यहाँ वक्ता शिष्य जनक हैं और श्रोता हैं ,  जनक के हो रहे गुरु बाल ऋषि सिद्ध योगी अष्टावक्र।

गुरु को ढूढ़ा नहीं जा सकता , हाँ लेकिन उसकी तलाश में भागा जा सकता है ।

परमहंस रामकृष्ण जब निराकार साधना सिद्धि के दरवाजे पर दस्खत दे रहे थे तब पंजाब से पैदल चल कर तोतापुरी जी दक्षिणेश्वर पहुंचे । त्रैलंग स्वामी कर्नाटक अपने गाँव के बाहर स्थित श्मसान पर जब तैयार हुए तब भागीरथ स्वामी जी पंजाब से पैदल चल कर वहाँ पहुंचे थे ।

उद्धव राधा को ब्रह्म ज्ञान देने हेतु मथुरा से वृन्दाबन पहुँचते हैं। जब वे राधा जी को कहते हैं कि प्रभु के आदेश पर  ज्ञान योग की दीक्षा देने के लिये मैं यहाँ आया  हूँ , उस समय राधा जी कहती हैं , मुझे ज्ञान - विज्ञान की कोई जरुरत नहीं , हमें योग नहीं चाहिए , कृष्ण का संयोग चाहिए जहाँ .....

कृष्ण राधा और राधा कृष्ण बन जाती है - उद्धव जी आप लौट जाइये और अपने कृष्ण से कहिए कि राधा जहाँ है , आनंद से हैं और वह मात्र इतना चाहती है कि वे अपना दर्शन दें । अब राधा और सब्र नहीं कर पायेगी , कान्हा - वियोग उसे मौत से मिला देगा अतः राधा - कृष्ण वियोग को वे राधा - कान्हा संयोग में बदल दें ।

अब यहाँ देखिये अष्टावक्र गीता में ठीक यही घट रहा है जहाँ जनक अष्टावक्र और अष्टावक्र जनक बन गए हैं । अब देखते हैं निम्न स्लाइड को ⬇️

त्बीत्बीबी


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