Monday, June 7, 2021

अष्टावक्र गीता सार अध्याय : 8 - 11 भाग - 2

 मनुष्य - जीवन की यात्रा एक दरिया जैसी है जो सुख - दुःख दो अपनें किनारों से टकराती हुयी अनंत सागर में पहुंचने की सोच ऊर्जा से पल - पल गुजर रही हैं ।

सुख और दुःख का हर पल होता हमारा अनुभव हमारे कर्मों का फल है । ये फल दो प्रकार के कर्मों के फल हैं ; एक वह  कर्म जिसका सम्बन्ध वर्तमान से है और दूसरा कर्म वह जो संचित कर्म हैं ।

कर्म विभाग और गुण विभाग वैदिक सिद्धान्त मनुष्य जीवन के संचालक ( operator ) हैं जिनके सम्बन्ध में पहले बताता जा चूका है।  इच्छित कर्म फल प्राप्ति हेतु किया गया कर्म मूलतः दुःख की जननी है जिसे  अध्यात्म में भोग कर्म कहते हैं । दूसरा योग कर्म होता है जिसके करने के पीछे कर्म फल की सोच नहीं होती अपितु जो कर्म बंधन मुक्त सहज कर्म होते हैं और जिसे प्रभु श्री कृष्ण की गीता में निष्काम कर्म कहा गया है । अब आगे देखिये अष्टावक्र गीता 👇



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