Friday, June 4, 2021

अष्टावक्र गीता अध्याय : 7

अष्टावक्र गीता का सातवां अध्याय राजा जनक का अध्याय है ।

पहले बताया जा है कि अध्याय - 1 में राजा जनक अपनें प्रश्न के उत्तर में अष्टावक्र जी के 19 श्लोकों को सुनने के बाद श्रोतापन की सिद्धि प्राप्त कर लेते हैं और उसके बाद पूरे अष्टावक्र गीता में उनके और अष्टावक्र के वचन सामानांतर एक ही दिशा में यात्रा करते हैं । अष्टावक्र और जनक के श्लोकों में कोई अंतर नहीं दिखता , यह एक अनोखी बात है । 

श्रीमद्भगवद्गीता में अर्जुन अंततक प्रश्न करते रहते हैं , उनकी बुद्धि अंततक स्थिर नहीं दिखती क्योंकि स्थिर बुद्धि प्रश्न रहित होती है लेकिन अष्टावक्र गीता में ऐसी बात नहीं , जनक मात्र 19 श्लोक सुनने के बाद स्थिर बुद्धि की स्थिति प्राप्त कर प्रश्न रहित हो जाते हैं ।

अष्टावक्र गीता अध्याय : 7 का केंद्र आत्मा - ब्रह्म हैं । श्रीमद्भगवद्गीत में आत्मा - जीवात्मा के सम्बन्ध में 08 अध्यायों में 26 श्लोक और ब्रह्म के सम्बन्ध में 03 अध्यायों में 09 श्लोक देखे जा सकते हैं । 

आत्मा सम्बंधित अध्याय > 2 , 3 , 6 , 8 , 10 , 13 - 15 हैं 

और ब्रह्म सम्बंधित अध्याय > 9 , 13 और 14 हैं ।

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