जानना होनें की पौधशाला है
होना अर्थात प्रकृति के रहस्यों में बसना
प्रकृति के दिल की धडकन वह सुनता है जो होश मय होता है
बुद्धि स्तर पर जाननें में अहँकार हो सकता है
बुद्धि स्तर की समझ संदेह मुक्त नहीं भी हो सकती
बुद्धि स्तर पर जानना जब ह्रदय में पहुँचता है तब होश उठता है
ह्रदय की अनुभूति में संदेह का होना संभव नहीं
बुद्धि स्तर की समझ दो पर आधारित होती है
जहाँ एक के दो विकल्प हों वहाँ संदेह का होना अनिवार्य होता है
संदेह जब श्रद्धा में बदलता है तब बुद्धि की सोच ह्रदय में पहुंचती है
श्रद्धा परम सत्य का द्वार है
श्रद्धा और संदेह दोनों एक साथ एक बुद्धि में नहीं रह सकते
संदेह से विज्ञान और श्रद्धा से परमात्मा का रहस्य उजागर होते हैं
भक्ति का प्रारम्भ श्रद्धा से है
विज्ञान का प्रारम्भ संदेह से होता है
जितना गहरा संदेह होगा उतनी गहरी विज्ञान की बात निकल सकती है
श्रद्धा की गहराई में प्रभु बसता है
======ओम्=========
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