मुह से चुप होना अति सरल है और मन से चुप होना साधना है
मुह से चुप होते ही मन की रफ्तार तेज हो जाती है
मुह से मौन रहनें का अभ्यास मन से मौन रहनें की स्थिति में पहुंचा सकता है
मुह से चुप रहनें की आदत डालनें से मनोविज्ञान बदलता है
मनोविज्ञान में आ रहे बदलाव को गंभीरता से समझने की जरुरत होती है
यदि अहँकार मुह से मौन बना रहा हो तो इसे समझिए ; यह खतरनाक स्थिति में ले जा सकता है
लोग कभीं कभी मौन रहनें का व्रत लेते हैं , यह अभ्यास – योग का एक चरण है
जब आप मौन व्रत में हों तब स्वयं को निहारते रहिये
हठात इंद्रियों को रोकना अहंकारी बना सकता है
इंद्रियों की मित्रता परम सत्य का द्वार खोल सकती है
मौन होना अर्थात शब्द रहित होना
शब्द रहित होना अर्थात भाव रहित होना
और भावातीत की स्थिति ही ब्रह्म की स्थिति है
ब्रह्म की अनुभूति जब घटित होती है उस काल में वह साधक स्वयं ब्रह्म हो गया होता है
भावातीत की स्थिति में साधक समाधि में पहुंचा होता है
और
वह संसार का द्रष्टा होता है
==== ओम्======
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