वह क्या है जो स्वयं में भय है ?
क्या वह मौत तो नहीं?
वह जो प्रकृति के नियमों के प्रतिकूल चलता है वह मौत की ओर जाता है
वह जो प्रकृति के अनुकूल चल रहा है उसे मौत से भय नहीं होता
मौत एक ऐसा परम सत्य है जिसको कोई नहीं नक्कार सकता
परमात्मा है , ऐसा कहना विवाद रहित नहीं हो सकता
लेकिन मौत है , ऐसा कहना विवाद रहित जरुर है
वह जो मौत से दूर भागता है,मौत से उतना नजदीक होता जाता है
तन की मौत तो सबकी होती है
लेकिन मन की मौत होना असंभव है
गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं , “ इंद्रियों में मन मैं हूँ "
मन एक माध्यम है जो एक तरफ अमरत्व से जुड़ा है और दूसरी तरफ मौत से
मन का जो गुलाम है वह मौत से दूर नहीं रह सकता
वह जिसके इशारे पर उसका मन चलता हो उसकी मित्रता मौत से होती है
भोगी मौत का बैरी है और योगी मित्र
प्रभु में डूबा हुआ योगी मौत को देख सकता है जैसे जुन्नैद
===== ओम्======
No comments:
Post a Comment