Tuesday, April 17, 2012

जीवन दर्शन 43

  • न हम किसी को हसते देख सकते हैं और न रोते

  • आखिर हम किसी को कैसा देखना चाहते हैं ?

  • हसने और रोने के मध्य की स्थिति को क्य समभाव नहीं कह सकते?

  • क्या गीता का मूल आधार समभाव नहीं?

  • जब हम किसी को हसते देखते हैं तब तुरंत पूछते हैं , “ भाई क्या बात है बहुत हस रहे हो ? “

  • जब हम किसी को रोते देखते हैं तब भी कारण जानना चाहते हैं , क्यों ?

  • कारण जाननें से हमें क्या मिलता है?

  • जो हसता है उसके पीछे कोई कारण होता है

  • जो रोता है उसके पीछे भी कोई कारण होता है

  • जो उसके हसने - रोने के करण को जानना चाहता है उसके जानने के पीछे भी कोई कारण होता है

  • क्या कारण रहित रोना नहीं हो सकता?

  • क्या कारण रहित हसना नहीं हो सकता?

  • जिस हसी के पीछे कोई गहरा कारण होता है वहाँ अहँकार भी होता है

  • जिस रोने के पीछे जितना गहरा कारण होगा वहाँ उतना गहरा मोह हो सकता है

  • मोह में नकारात्मक अहँकार होता है

  • वह हसी जिसमें अहँकार न हो और भोग तत्त्वों की छाया न हो,परम से जोड़ती है

  • कारण रहित रोना सत् से जोड़ता है

  • हमें लोगों की इतनी गहरी चिंता क्यों रहती है?

  • हम कब और कैसे स्व पर केंद्रित हो सकेंगे?

  • ध्यान एक मार्ग है जहाँ न हसी है , न रुदन और उससे जो निकलता है वह सब का आदि है

  • सकारण ध्यान ध्यान नहीं,दिखावा होता है

  • ध्यान से मनुष्य स्वयं को पहचाननें लगता है

  • स्व की पहचान में परमेश्वर बसता है

==== ओम्=======





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