न हसना बुरा है न रोना
न न रोना बुरा,न न हसना
अच्छा और बुरा की सोच गुण प्रभावित बुद्धि की उपज है
गुण प्रभावित बुद्धि पर सत् का प्रतिबिम्ब नहीं बनता
निर्विकार बुद्धि में सत्य के अलावा और कुछ नहीं होता
हंसी और रोना दोनों एक जगह पहुंचाते हैं
हसना और रोना दो अलग – अलग मार्ग दिखते हैं लेकिन ऐसा है नहीं
हसना और रोना एक ऊर्जा के दो रूप हैं भौतिक स्तर पर मात्र
हसना और रोना दो अलग – अलग भाव हैं
भाव भावातीत से हैं
भावातीत और कोई नहीं परमात्मा है
भाव से भाव की उत्पत्ति कैसे संभव है ?
गीता कहता है-----
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः गीता - 2.16
====ओम्=====
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