मन नियंत्रित होता है ध्यान से
मन से मित्रता होती है ध्यान से
मन की दो दिशाएं हैं ; आक्रमण एवं प्रतिक्रमण
जब हम किसी और के सम्बन्ध में सोच रहे होते हैं तब मन आक्रमण की स्थिति में होता है
जब मन बाहर से अंदर की ओर चलता है तब उसे प्रतिक्रमण कहते हैं
आक्रमण में मनुष्य संसार से जुड़ता है
प्रतिक्रमण में मनुष्य यह समझनें लगता है कि मैं कौन हूँ ?
पांच कर्म इन्द्रियाँ एवं पांच ज्ञानेन्द्रिया मन के फैलाव हैं
दस इंद्रियों का सम्बन्ध होता है प्रकृति में बसे पांच बिषयों से
मन से संसार की यात्रा अति सरल यात्रा है
मन से भगवान की यात्रा अति कठिन यात्रा है
मन से मंदिर और मंदिर में भगवान की अनुभूति , साधना की यात्रा है
शांत मन में प्रभु का निवास होता है
मन कामना पूर्ति के माध्यम नहीं,अपितु कामना के प्रति होश मय होनें के माध्यम हैं
मन वह चौराहा है जहाँ से दो मार्ग निकलते हैं ; एक नरक को जाता है और दूसरा स्वर्ग को
मन ख़्वाबों में रखता है और चेतना सत् में
=====ओम्=======
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