क्या कभीं आप ऐसा सोचते हैं कि …....
आज आप जिन गलियों में किसी की उंगली पकड़ कर उसे घुमा रहे हैं [ अपनें बेटे को / बेटी को ] उन गलियों में कभीं आप को भी आपकी उंगली पकड़ कर कोई घुमाता रहा है /
जिस घर में आज आप किसी को दुल्हन [ पुत्र की पत्नी ] शब्द से संबोधित करते हैं उसी घर में किसी दिन उसी शब्द से कोई आप को संबोधित करता रहा है /
जिस घर में आप किसी को पानी लानें को कह रहे हैं उसी घर में किसी दिन कोई आप को पानी लानें को कहता था /
जिस घर का मालिक कल कोई और था आज उसी घर का मालिक आप है /
आज जिस संपदा का मालिक आप हैं कल उस का मालिक कोई और होगा /
कल आप किसी के पुत्र / पुत्री थे , आज को आप का पुत्र / पुत्री है और आनें वाला कल आप को किसी का दादा / दादी बनानें वाला है /
किसी दिन किसी की गोदी में आप होते थे और आज आप की गोदी में कोई और है /
ऐसे एक नहीं अनेक उदाहरण हैं जो आप को आकर्षित कर सकते हैं , आप की सोच की दिशा बदल सकते हैं लेकिन आप इब संवेदनशील तथ्यों की ओर पीठ किये हुए हैं / आप ज़रा सोचना ऎसी बातों को यदि आप समयानुकूल सोचते रहे को क्य आप में कभीं अहँकार आ सकता है ?
ऊपर की स्मृतियाँ आप को समभाव में रखती हैं
और
गीता कहता हैं-------
समभाव मुक्ति का द्वार है//
===== ओम्======
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