यहाँ सभीं अपनें को आजाद समझते हैं , लेकिन … ...
हैं सभीं गुलाम , जैसे … ...
कोई ममता का गुलाम है
कोई कामना का गुलाम ही
कोई अहँकार का गुलाम है
कोई सौन्दर्यता का गुलाम है
कोई भोजन का गुलाम है
कोई लोभ का गुलाम है
कोई भय का गुलाम है
कोई पत्नी का गुलाम है
कोई पति का गुलाम है
कोई अपनें धार्मिक गुरु का गुलाम है इसलिए की जो संपदा उसके पास है वह कहीं सरक न जाए
कोई अपनें ब्यापार का गुलाम है
कोई मंदिर का गुलाम बन कर धन का स्वामी कुबेर बनना चाहते है
धन – धान्य , परिवार , वासना , अहँकार और सात्त्विक , राजस एवं तामस गुणों के तत्त्वों के सभीं गुलाम है लेकिन स्वयं को आजाद समझ कर सीना तान कर रह रहे हैं और उनका यहीं भ्रम उनको ज़िंदा भी रख रखा है / जिस दिन यह बोध हो जाता है कि हम उसकी गुलामी कर रहे हैं जो दो कौडी के हैं , जो मुझे नरक की ओर खीच रहे हैं उसी घडी रुपानारण हो उठता है और सत्य की किरण उस मनुष्य केसभीं नौ द्वारों को प्रकाशित कर देती हैंऔर वह ब्यक्ति परम आजाद हो कर चल पड़ता है परम धाम की ओर /
वह जिसकी पीठ भोग – संसार की ओर हो और नजरें अनंत में ठहरी हों वह है तिर्थंकर/ /
====ओम्=====
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