Sunday, October 7, 2012

जरा रुकना बश दो घडी

  • कौन दुखी रहना चाहता है ?
  • यहाँ कितने सुखी हैं , तन एवं मन से ?
  • कितनें अपने दुःख का कारण स्वयं को समझते हैं ?
  • कितनें अपनें दुःख को समझते हैं ?
  • कितनें औरों के दुःख को समझते हैं ?
  • कितनें औरों के दुःख  को देख कर आनंदित होते हैं ?
  • कितनें दुःख की मूल को देखना चाहते हैं ?
  • कितनें सच्चाई को समझना चाहते हैं ?
  • कितनें दूसरों को दुखी कर के सुख का अनुभव करते हैं ?
  • कितनें दूसरों के दुःख को अपनें दुःख की भांति देखते हैं ?
यहाँ हम क्या सोच रहे हैं ? क्या कर रहे हैं ? हमें स्वयं को पता न भी हो सकता है लेकिन कोई तो है ------
जो सब पर बराबर नजर डाले हुए है और जहाँ एक दिन सबको पहुँचना है और पहुँच कर अपनें किये गए का जबाब भी देना  है , जहाँ कोई तर्क - वितर्क की कोई संभावना नहीं , जहाँ चेहरा देख कर दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया जाता है /
समय किसी का इन्तजार नहीं करता , दो घडी कभीं अकेले में बैठ कर सोचना कि ........
जिनके लिए इतनी गति से भाग रहे हो क्या वे आप के साथ चिता जलनें तक भी रुक पायेंगे ?
==== ओम् =======

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