Sunday, November 2, 2014

कुछ तो सुनते ही हैं

# पृथ्वी के पास क्या नहीं है ? पेट्रोल , कोयल ,
गैस , सोना ,चांदी , हीरे और वह सब कुछ जिसकी हम कल्पना कर सकते हैं पर क्या कभीं पृथ्वी सीना तान कर कुछ कहती भी है ?
# अब ज़रा अपनें को देखते हैं । क्या हमारे पास कोई ऐसी चीज है जिसको हम पृथ्वी से न चुराए हों ? सोचना पड़ेगा और यह कहते मुह नहीं दुखता कि हमारे पास यह है ,वह है आदि -आदि ,अरे भाई ! जो हमारे पास है ,वह हमारा कैसे हुआ ? क्या किसी चीज पर अपनीं मोहर लगानें से अपनीं हो जाती है ,क्या ?
# क्या पृथ्वी कुछ कहती भी है ? मनुष्य कहेगा जी नहीं , पृथ्वी क्या कहेगी ? लेकिन पृथ्वी भी कहती है जिसकी आवाज मनुष्यको छोड़ अन्य सभीं जीव सुनते हैं और उसकी बात को मानते भी हैं ,ऐसे जीव जिनका सम्बन्ध पृथ्वी से है ।
#अब एक नज़र इस पर भी :
* जब भूकप्प आता है ...
* जब तूसामी अपना जलवा दिखाती है ...
* या कोई अन्य प्राकृतिक आपदा आती है ..
°° तब कौन मरते हैं ?
1- मनुष्य और पालतू जीव जिनको मनुष्य अपनें स्वार्थ - सिद्धिके लिए गुलाम बना रखा है ।
~ पर ~
2- जंगल में प्रकृति की गोद में बसेरा करनें वाले आदि बासी और अन्य जीवोंके मरनें की संभावना बहुत कम रहती हैं ,क्यों ? क्योंकि वे आपदा आनें से पहले पृथ्वी की आवाज को सुन लेते हैं और अपनीं सुरक्षाका बंदोबस्त आपदा आनें से पहले कर लेते
हैं ।
^^ मनुष्य जैसे - जैसे प्रकृति से दूर होता जा रहा है , उसकी तन्हाई बढती जा रही है और प्रकृति जो समझने के लिए उपकरणों का निर्माण करनें में अपनी ऊर्जा लगा रहा है । उपकरणों का निर्माण करो पर स्वयं को प्रकृति से दूर न रखो
# विज्ञान तर्क आधारित है ....
# तर्क संदेह आधारित है ....
~~~ और ~~~
● सत्य तर्क - वितर्क और संदेह से परे है ● ………ॐ ………

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