Monday, October 13, 2014

पर सुनता कौन है

●क्या हम योंही सदैव चूकते रहेंगे --
 * सत्यकी तलाश ही मनुष्य की परम तलाश है । हमारा सारा जीवन अनजानें में योंही गुजर रहा है , सत्य की खोज में , लेकिन जब और ज्योंही सत्यका सामना होना होता है , हम एकाएक झट से अपना रुख बदल लेते हैं ,और इस मौके पर भी हम चूक जाते
 है । 
 * ऐसा क्यों हो रहा है ? 
 ऐसा इसलिए हो रहा है कि हम जिसकी खोज में भाग रहे हैं , उसकी हमें कोई पहचान नहीं मालूम । हमें इतना इशारा मिला हुआ है कि वह सर्वत्र है और सबमें समभाव से हैं पर इतना जानते हुए भी हमारी उसकी खोज की भागा दौड़ी कहीं रुकनेंका नाम नहीं लेती और अंततः वह घडी आ ही जाती है जब हमारी श्वासे कहनें लगती हैं कि अब बश करो ,मेरे पास इतना भागा - दौड़ी के लिए वक़्त नहीं ,अब मैं तेरा साथ नहीं दे सकती और चल रहीं हूँ । 
 * फिर क्या होता है ?
 क्या होना है , जीवन भर जिनको परम समझ कर इकट्ठा करते रहे ,वे मुर्दे से दिखनें लगते हैं ।जिनको अपना समझ कर पाला था उनके कदम अब मुझसे उलटे चलते दिखनें लगते हैं ,जो मेंरे एक इशारे पर भागे हुये आते थे ,अब उनकी पीठ मेरी तरफ नज़र आती है , इस बेचारेकी स्थिति में मेरी आँखें इस दृश्यको देखनें में अपनें को असमर्थ समझती हैं और चुपके से हमेशा केलिए बंद हो जाती हैं । 
* फिर क्या होता है ?
 आप घरके बाहर जमीन पर लिटा दिए जाते हैं जिससे आनें -जानें वालों को हमारी असलियत का पता चल सके और जल्दी -जल्दी में आपको प्रकृति को सुपुर्द कर दिया जाता है । 
* फिर क्या होता है ? फिर क्या होता है , आपकी यात्रा कहीं और की होती है ,आपके अपनों की यात्रा घर की ओर होती है और जिस सम्पदाके मालिक अभी कुछ घडी तक आप थे ,उसका मालिक अब कोई और होता है । 
** फिर कुछ नहीं होता ,जो पहले हुआ है ,वही बार -बार घटता रहता है और हम :--- 
# इस नशे में रहते हैं कि --- 
* संसार हमारे सहारे चल रहा है * 
<> अहंकारकी मूछें कभी झुकती नहीं<> 
~~~ ॐ ~~~

3 comments:

Archana Chaoji said...

बिलकुल सही कोई सुनता नहीं .. जो होता है वही बार बार होते रहता है .... हम खुद भी वही करते चले जाते हैं ....
मनन करने योग्य बातें ...

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बढ़िया

दिगम्बर नासवा said...

जेवण का सत्य लिखा है ... फिर भी होता है ....