दिल से कौन सुनता है ?
- गुरुद्वारा से आ रही गुरुवानी की परम धुन को .....
- मंदिर से उठती ओम् की धुन को .....
- मस्जिद से आ रही अल्लाह ओ अकबर की पुकार को .....
- खाली पेट वाले की भूख के दर्द को ......
- वक्त की पुकार को .....
- सब के सीनें में दबी दर्द को ......
- मीरा के भजन को .....
- कबीर जी के वचनों को .....
- नानक जी के ह्रदय के भाव को .....
- गायत्री के छंद को ......
- पृथ्वी की दर्द भरी आवाज को ....
ऎसी एक नहीं अनेक बातें हैं, हम इन्शान को सुननें के लिए
लेकिन ---
हम क्यों नहीं सुन पा रहे , कोई तो कारण होगा ही ?जी , हाँ , कारण है और गहरा कारण है .....
हम यदि स्वयं को देखें तो एक चलती - फिरती लाश के अधिक नहीं जिसकें गति तो है ....
लेकिन
चेतना नहीं
ऐसा कौन सा धर्म ग्रन्थ है जो यह न कहता हो कि ----
परमात्मा तुम्हारे ह्रदय में है , हम जानते भी हैं लेकिन समझते नहीं , न ही समझनें की कोशिश करते हैं /
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