* हर बेटा पिता बनता है हर पिता दादा बनता है । हर लड़की माँ बनती है ,हर माँ दादी बनती है यदि अन्य बाते सामान्य रहें तो लेकिन क्या इस परिवर्तनका किसी को पूर्वानुमान होता है ? पूर्वानुमान न होनें के कारण तरह -तरह की सामाजिक समस्याएं खड़ी होती रहती हैं और हम सब इन समस्याओं में उलझे -उलझे वहाँ पहुँच जाते हैं जहाँ से इस संसार को तन्हाई में छोड़ना पड़ता
है ।
* यह मेरे कुल की मर्यादा है ,यह मेरे इज्जतका सवाल है , यह मेरे धर्म के प्रतिकूल है , ऐसा नहीं हो सकता ,वैसा नहीं हो
सकता , ऐसे एक नहीं अनेक बंधनों में हम अपनें उत्तराधिकारी को बाद कर रखते हैं इन बंधनों की इतनी गहरी पकड़ होती है कि उस बिचारे के दिल के अरमा सिकुड़ते चले जाते हैं और उसके पास इसके अलावा और कोई चारा नहीं रह जाता कि वह भी अपनें पिता की बातोंको अपनें उत्तराधिकारियों के ऊपर थोपे । अप ज़रा अपनी निगाह समाजमें दौड़ाएं और देखें , क्या ऐसा ही नहीं हो रहा ?
<> ऐसी स्थिति में और क्या हो सकता है ? ऐसे कितनें दिखते हैं जो अपनी आगे की पीढ़ी के बच्चो को मौका दे रहे हो संसार के अनुभव को प्राप्त करने केलिए ? क्या बिना कुछ किये भी अनुभव मिलता
है ?
~~~ ॐ ~~~
1 comment:
ध्यान देने योग्य बिन्दु। आभार!
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