* खेल , खेल है , इसमें इतना तन्मय न हो जाओ कि भूल जाओ उसे जो खिला रहा है , उसे जो खेल रहा है और उसे जो इसका द्रष्टा है ।कैसी खेल है जिसमें खेलनें वाला , खिलानेवाला और द्रष्टा तीन नहीं एक
है ?
* अनेक योनियों से गुजरनेंके बाद जिसका अनुभव गहरा जाता है उसे मनुष्य योनि मिलती है और मनुष्य योनि में आया जीव यह समझ सकता है कि वह स्वयं क्या है ,यह संसार क्या है और इन सबके माध्यमसे उसका द्रष्टा बन सकता है जो इन सबके होनें का माध्यम है और जिसे प्रभु की माया कहते हैं । भागवत कहता है ,भक्त माया का द्रष्टा होता है ।वह मनुष्य जो माया का द्रष्टा बन जाता है ,निराकार प्रभु उसके लिए साकार हो उठता है और उस परम अप्रमेय ,सनातन और अब्यक्त में वह अपना बसेरा बना लेता है।
~~ रे मन कहीं और चल ~~
Monday, May 19, 2014
यह खेल है , जब आये हो तो खेलो
Labels:
जीवन एक खेल है
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment