सोच - सोच कर ----
* सोच - सोच कर जब बुद्धि - मन उपराम की स्थिति में आते हैं तब उसकी मामूली सी झलक मिलती है ।
* उसकी परीक्षा में कोई - कोई और कभीं - कभीं औअल आता है ज्यादातर लोग असफल ही होते हैं पर कुछेक कक्षोन्नति दर्जे में सफल होनें में कामयाब हो पाते हैं ।
* उसकी परीक्षा ऐसी होती है जिसकी कोई पूर्व सूचना नहीं होती और ज्यादातर लोग बिना तैयारी इम्तहान देते हैं तथा इम्तहानके बाद भी बहुत कमको यह पता चलता है कि उसका इम्तहान हो चूका है ।
* यात्राका मज़ा तब मिलता है जब तन यात्रा पर हो और मन शांत हो कर यात्राका द्रष्टा बन गया हो ।
* संसारमें भोगकी यात्रा सुख - दुःखकी यात्रा है और इन दो तत्त्वोंके मध्यसे जो समभावकी यात्रा है ,वह है परमकी यात्रा ।
●~~~ ॐ ~~~●
Saturday, March 14, 2015
कतरन - 9
Labels:
सोच -सोच कर
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment