* मनुष्यके अन्दर दो ऐसे स्पेस हैं जहां भाव पैदा होते रहते हैं - मन और हृदय ।
* मनके भावको जो भाषा में ढ़ालनेका यत्न करते हैं ,कवि बन कर रह जाते हैं
> और <
* जो हृदयके भावोंकी धारामें बहनेंका अभ्यास कर लेते हैं , वे नानक -मीरा जैसे भक्त बन कर एक दिन बहते - बहते परम सागरमें पहुँच कर स्वयं परम सागर बन जाते हैं ।
●~~~ ॐ ~~~~●
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