<> क्या रिश्ता है , इन दोनों में ?
* वह जो मर्मको समझता है , वहीं सही मलहम लगानेंकी तकनीकको समझ सकता
है ।
* जितनें मरहम लगानें वाले आपको मिलेंगे , उनमें शायद ही कोई ऐसा मिले जो अपनें दिल से चोट की गाम्भीरताको पकड़नेकी कोशिश भी करता हो , वरना तो , चोट पर मिर्च छिड़कनेंके बहानें ही लोग मरहमकी डिब्बी लेकर आपके पास आते हैं ।
* चोटकी गंभीरताको दिल से समझना , और आँखें बंद करके दिलसे उस चोटको सहलाना, मरहम लगानेंसे उत्तम परिणाम देता है ।
* वह जो मर्मको समझता है , उसे भौतिक मरहम की कोई जरुरत नहीं ।
* चोटकी गंभीरताको देखते ही हृदय से उपजे और आँखोंसे टपके दो बूँद आँसू , परम मरहम का काम करते हैं ।
~~~ ॐ ~~~
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