* मौनका आकर्षण अतुल्य है
* मौनका आकर्षण ध्यानकी गहराई के साथ सघन होता चला जाता है ।
* ध्यानकी गहराई के प्रवेश द्वार पर पहले जो प्रसाद मिलता है यह है मौन ।
* मौन जब पकता है तब वह ध्यानीको द्रष्टा - साक्षी बना देता है ।
* मौन सत्यका बसेरा है ।
* मौन घटित होनें पर अंतः करण निर्विकार अवस्था में शुद्ध हीरे की तरह विकिरण द्वारा जो किरणें फैलाता रहता है , वे किरणें चरों तरफ एक परम ऊर्जा का क्षेत्र निर्मित करती हैं । वह जो जगना चाह रहा होता है , वह इस ऊर्जा क्षेत्र से आकर्षित होता चला जाता है । उसका यह आकर्षण उसे मौनी बना देता है ।
~~~ ॐ ~~~
Wednesday, June 17, 2015
कतरन - 16
Labels:
मौन
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment