● मैं एक माध्यम है तूँ को समझनें केलिए ।
मैं का अर्थ है अहंकार । भागवत में यदि आप मैत्रेय ,नारद , प्रभु कृष्ण और प्रभु कपिल जी के
तत्त्व - रहस्य को गंभीरता से देखें तो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की ब्यक्त सूचनायें तीन प्रकारके अहंकारों से हैं । गुण आधारित सात्त्विक ,राजस और तामस ये हैं तीन अहंकार , जिनकी उत्पति महतत्त्वसे काल के प्रभाव में होती है ।
● मैं को कोई समझना नहीं चाहता और तूँ को समझनें में सारा जीवन गुजर जाता है पर सच्चाई यो यह है की जबतक मैं की गहरी परख नहीं हो जाती ,तूँ की परख करनी संभव नहीं ।
● अपनीं गलतियों को दूसरों से सुननें पर सारी उर्जा क्रोध में रूपांतरित हो उठती है और यदि अपनीं गलतियों को हम अकेले में प्रभुको साक्षी मानकर देखनें का अभ्यास करे तो यह होता है ,
अभ्यास -योग तो मैं के प्रति होश उठा कर परममें पहुँचाता है ,पर करनें की कोशिश करनें वाले
दुर्लभ हैं ।
** आज इतना ही **
~ हरि ॐ ~~
Saturday, July 19, 2014
मैं और तूँ
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