जीवन भर हम लोग सही मार्ग पर चलते हैं -
हम सब कुछ ऐसा ही समझते रहते हैं लेकीन एक दिन ......
जब गले तक डूबा अपनें को पाते हैं तब भी जेहन में यह नहीं आता की -----
हो न हो हमसे कूई गलती हो गयी हो , हाँ , इतना कहते जरुर हैं की -----
सब ठीक ही चल रहा था , लगता है , किस्मत साथ नहीं दिया ।
इंसान के लिए प्रभु बार - बार गलती करता रहता है , इंसान प्रभु को माफ़ करता चला जाता है ,
इंसान एक ऐसा प्राणी है जो कभीं गलती करता ही नहीं और दुसरे की
गलती पर उसे सजा मिलती रहती है ।
मनुष्य केवल एक अपना स्वभा को बदल दे तो वह कभी दुखी हो नहीं सकता -----
दूसरों की गलती पर स्वयं को कष्ट देनें का स्वभाव ।
हम स्वयं दुखी नहीं हैं लेकीन जब यह देखते हैं की
दूसरा ऐसा क्यों कर रहा है तब तुरंत दुखी हो उठते हैं , जब तक हम दुसरे के कर्म पर नज़र नहीं डालते ,
हम दुःख से दूर रहते हैं ।
हम दूसरों के लिए दुःख पैदा करके सोचते हैं , सुख की गंगा में नहाना और यह प्रकृति के नियम के प्रतिकूल
है । हमारा हर कदम प्रकृति की बिपरीत दिशा में उठता है पर हम यही समझते रहते हैं की हमारा
मार्ग सही है । अमावस्या की रात को दिन समझ कर जो आंखें बंद करके तेज गति से चलेगा , वह तो
कदम - कदम पर टकराता ही रहेगा ॥
ध्यान एक ऐसा मार्ग है ------
जो हमारे जीव के मार्ग को निर्विकार बनाता रहता है ।
ध्यान में गुजरे दो पल मनुष्य के अन्दर की ऊर्जा को इतना तो पवित्र करही देते हैं जिसके प्रभाव में मनुष्य का
कोई कदम गलत उठ नहीं सकता ॥
===== अगला कदम किधर और क्यों उठ रहा है ? ======
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