** हम अपनें जीवन को जितना सुलझाना चाहते हैं , वह उतना और उलझ जाता है , क्यों ?
** ऐसा सब के साथ हो रहा है या केवल मेरे साथ ?
** यदि सब की हालत एक सी है तो ----------
++ हम इसकी बुनियाद को क्यों नहीं पकड़ना चाहते ?
++ हम असल में बुनियाद तक पहुँचना नहीं चाहते ॥
हमारी सारी चाहतें क्षणिक हैं ......
## हम इंतज़ार में विश्वास नहीं करते ॥
## हमारी चाहत होती है - जो मिलना है , वह अभी मिल जाए ॥
हमें मार्ग की तलाश में केवल एक दिशा दिखती है की .......
हमें चाहिए अपनें उलझनों से दोस्ती करना , और ऎसी दोस्ती की ......
$ हमें उसका पल - पल का बोध हो , जो हमसे हो रहाहो ॥
हमारा सुलझन के लिए उठा हर कदम उलझन में पड़ता है , क्यों की हम भोग की यात्रा पर हैं ॥
भोग में भोग के समय जो क्षणिक सुख मिलता है , उस सुख में दुःख का बीज पल रहा होता है ॥
ऐसा कोई क़ाम नहीं जिसमें दोष न हो , लेकीन यह समझते हुए कर्म क़ा चुनाव होना चाहिए ॥
भोग कर्म में मात्र क्षणिक सुख ही मिल सकता है , बाद में निराशा ही नज़र आती है ॥
सुखी जीवन जीनें के लिए आप के पास एक रास्ता है ........
गीता पढ़िए और गीता में अपनी कुटी बनाइये ॥
ना काहू से दोस्ती , ना काहू से बैर , इस बात को गीता कहता है ......
सम भाव ॥
******** आप सब को दीपावली एक नयी ऊर्जा से भर दे ********
====समझना तो पड़ेगा ही ======
1 comment:
बहुत अच्छा पोस्ट, दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये....
sparkindians.blogspot.com
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