हिन्दू परम्परा में कितनें मौके हैं , आगे सरकने के लेकीन ......
हम पहाड़ की भाँती एक जगह स्थिर हो चुके हैं , कुछ ऐसा दिखता है ॥
** अभी - अभी हमनें देखा गणेश पूजा ----
मिटटी से गणेश की प्रतिमा मन के आधार पर रची , उसे कुछ दिन घर में रख कर पूजी और एक दिन
उस प्रतिमा को पानी में प्रवाह कर दी , आखिर यह है क्या ?
पश्चिम के लोग कहेंगे , यह पागलपन है लेकीन यह साधाना की एक सीढ़ी है जो बहुत मजबूत है ।
प्रतिमा को बनाना , मन की साधना है ......
प्रतिमा प्रतिमा का नियमित पूजा करना , साकार साधना है .....
प्रतिमा का एक दिन विसर्जन कर देना है ------
साकार से निराकार में प्रवेश करना ॥
सीधे निराकार में कोई कैसे प्रवेश पा सकता है , ऐसे लोग शदियों बात अवतरित होते हैं जो जन्म से
निराकार में होते है ॥
** दीपावली आयी , चारों ओर रंग - बिरंगी रोशनिया देखनें को मिली ,
खूब खाया - पीया और ....
मौज उड़ाया और अब वह दिन भी गुजर गया लेकीन
क्या हम कुछ करवटें बदले ? जी नहीं वहीं के वहीं हैं ।
** अब आ रही है कार्तिक पूर्णिमा जिसको गुरु पूर्णिमा भी कहते हैं ,
यह वह दिन है जिस दिन बुद्ध को
निर्वाण मिला था और धर्म शात्र कहते हैं .....
इस दिन चाँद से अमृत टपकता है ॥
क्या इस दिन को भी वैसे ही जानें देना है ?
तड़प तो हर इन्शान को है , सब पूर्ण से जुड़ना चाहते हैं क्योंकि हम सब में उसका अंश है ,
हम सब उसके ही अंश हैं , हम ऐसे हैं इस संसार में .......
जैसे मेले में कोई लड़का अपनें पिता की उंगली छूट जानें से कहीं गूम हो गया हो और उनको खोज रहा हो ।
ऐसा बच्चा घडी भर के लिए तो कहीं चुप हो जाता है लेकीन उसके अन्दर खोज की ऊर्जा बवंडर की
तरह चलती ही रहती है और जब -----
वह अपनें पिता को पा जाता है तब उसकी खुशी को देखना , यह वह खुशी है .....
जिसको परमानंद कहते हैं ॥
कार्तिक पूर्णिमा के दिन सबसे अधिक लोग .....
निर्वाण प्राप्त करते हैं -----
सबसे अधिक लोग पागल भी होते हैं ------
पागल होनेंवालों में ......
स्त्रियों की संख्या कम और पुरुषों की संख्या अधिक होती है ॥
कार्तिक पूर्णिमा की रात चाँद की रोशनी ....
किसी को पागल बनाती है तो
किसी को निर्वाण में पहुंचाती है .....
आप क्या चाहते हैं ?
==== आओ चलें अब उस पार =====
No comments:
Post a Comment