रामू काका अब अकेले अपनें गाँव में रहते हैं ,
होगी उनकी उम्र लगभग सत्तर साल की ।
अब से लगभग पैतालीस साल पहले रामू काका उस जमानें में
चार साल की इंजिनीअरिंग की डिग्री ली थी ।
मुझे मालूम है की परमात्मा का उन पर बहुत स्नेह रहा है ।
कक्षा पांच से अभियंत्रण की डिग्री तक उनके
सामनें अनेक समस्याएं आयी लेकीन रामू काका गिर - गिर के उठते रहे ।
जब मैं रामू काका के गाँव पहुंचा तो अब तक लगभग वह गाँव वैसे के वैसे पडा है ,
कोई विकास नहीं , विश्वविद्यालय से डिग्रीयां ले - ले के बेकार समय काट रहे हैं ;
उनमें कोई स्नातक है ,
कोई स्नातकोत्तर है तो कोई शोध भी किया हुआ है
पर नौकरी के नाम पर शून्य ही दिखता है ।
मैं सोच रहा था - देखते हैं , रामू काका मुझे अब पहचानते भी हैं या नहीं ।
मैं गया अन्दर उनके एक छोटे से मकान में , झुक कर प्रणाम किया ,
रामू काका की आँखें भर आयी ,
और मैं भी भाउक हो उठा । मैं काका से पूछा - काकाजी !
आप के बच्चे कहाँ हैं ? काकाजी बोले - बेटा ! तुमको तो मालूम ही होगा
क्योंकि तुम भी तो इसी गाँव के हो , हाँ ठीक है आज परदेशी बन गए हो ।
मेरा एक बेटा लन्दन में है , दूसरा अमेरिका जानें की तैयारी कर रहा है और इस समय
वह दील्ली के पास किसी विदेशी कम्पनी में है ।
मैं बोल पडा - काका एक को तो अपनें पास रखते ?
काका को मानो जैसे करेंट लग गया हो , बोल पड़े - क्या कहते हो ?
सूख रहे पेड़ के लिए वह अपनी जिन्दगी बेकार कर दें ?
मैं तो प्रभु से कहता हूँ -
हे प्रभु !
यदि अगले जनम में इंसान बनाना तो ऎसी ही औलाद देना ॥
मनुष्य को इतना भी स्वार्थी नहीं होना चाहिए की अपनें लिए अपनें बच्चों के जीवन की
रफ़्तार को कम करदे ।
==== काका का दिल प्यार से भरा पड़ा है =====
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