पाइथागोरस की प्रमेय है :------
ऐसा त्रिभुज जिसका एक कोण नब्बे अंश का हो , उसके कर्ण का यदि आप बर्ग करदे
जैसे यदि पांच इंच हो तो पांच का बर्ग होगा 5x5=25 , तो यह रकम शेष दो भुजाओं के
बर्ग के योग के बराबर होगी ॥
उदाहरण लेते हैं -----
जैसे एक ऐसा त्रिभुज है जिसका एक कोण नब्बे अंश का है , आधार चार इंच का है ,
दूसरी भुजा तीन इंच की है
तो -- तीन का बर्ग + चार का बर्ग और इस रकम का बर्गमूल जो होगा वह होगा
कर्ण की लम्बाई ।
यह प्रमेय वैदिक गणित में आठ सौ साल इशा पूर्व में दी जा चुकी है
और इस प्रमेय की आधार पर
मिस्र [ इजिप्त ] की सारी पिरामिडों की बनावटे आधारित हैं ।
हम चर्चा कर रहे हैं रहस्य और दर्शन के ऊपर , रहस्य वह है जिसको ब्यक्त किया ही नहीं जा सकता और
जो लोग इस असंभव को संभव बनाना चाहते हैं , उनको कहते हैं - दार्शनिक । रहस्य को जो देखता हुआ
चुप रह जाता है , वह है मिस्टिक , और जब वह अपनें नजदीक रहनें वालों को कुछ - कुछ बातें
बताता है तब उनमें से कुछ जो बुद्धि आधारित होते हैं , वे बिना अनुभव के रहस्य को शब्दों में बाधते है ।
जो लोग ऐसा करते हैं , उनको दार्शनिक कहते हैं ॥
मैं बहुत पहले लिखा था -------
जो बिना अनुभव गाता है , यह समझ कर की वह गा रहा है तो वह होता है - कबी
और जो जिसमें जीता है और उसको गाता है , वह है - ऋषि ॥
पाइथागोरस के ही समय [ लगभग ] भारत में महाबीर थे और बुद्ध , जो सत्य में जी रहे थे लेकीन कभी
गणित के बारे में सोचा भी नहीं क्योंकि
वे प्रकृति - पुरुष के द्रष्टा थे
और देखनें में उनको परम आनंद
मिलता था ।
आइन्स्टाइन का सापेक्ष - सिद्धांत बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में गणित - रूप में आया लेकीन
महाबीर का सापेक्ष - सिद्धांत छब्बीस सौ साल पुराना है और उसको आज जाननें वाले शायद हो भी न ॥
===== जीवो मेरे प्यारों , अलमस्ती में जीवो =====
No comments:
Post a Comment