Saturday, December 18, 2010
यह कौन हो सकता है ?
सुबह - सुबह की बात है , बजा होगा तकरीबन दस ।
मैं शिव - मंदिर में था , नित्य की भाँती और जब वहाँ से चलनें लगा
तो दिल में एक बात आयी ---
आज क्या है की मंदिर में कोई भी नहीं यहाँ तक की कोई पुजारी
भी नहीं दिख रहा , कुछ तो होगा ही ,
मैं भी इंसान हूँ आप सब की ही तरह
शिव का मंदिर ...
आगे शिवलिंगम ....
और एक मिनट भी मन उस शिव लिंगम पर मुझे नहीं टिकने दिया
उठा कर फेक दिया राजनीति से भरे संसार में
जैसे कूड़ेदान में लोग गंदगी फेकते हैं ।
मैं अपनें को सम्हाल ही रहा था की मंदिर के एक कोनें में किसी के होने
की आहट मिली और मैं उसे देखनें के लिए उधर चल पडा ।
वहा देखा एक नब्बे साल ली बृद्ध महिला एक बोरे के सहारे एक गट्ठर की तरह पड़ी थी ।
मैं पूछा - माँ क्या बात आप कौन हैं और यहाँ कैसे ?
वह बोली क्या अंधे हो ?
उसकी आवाज में दम था ,
मैं तो घबडा ही गया लेकीन चुप रहना ही उचित समझा ।
माँ आगे कहती हैं , क्या तू यहाँ सूनापन नहीं देख रहा ?
क्या तू समझता है की बस्ती के सभी लोग मर गए हैं ?
जी नहीं सारी बस्ती मुझे मारनें गयी है और
मैं यहाँ शिवजी की शरण में चुपचाप बैठी हूँ ।
बात और पेचीदा हो रही थी , मैं प्रार्थना किया की .....
माँ सीधी भाषा में मुझे बताएं की बात क्या है ?
वह बोली जब तू माँ कह रहा है तो ज़रा नजदीक आना
क्या पता कोई खोजता - खोजता यहाँ तक आ पहुंचे ।
मैं दो कदम आगे बढ़ा और वह बोली , सुन ----
मैं जी टी रोड हाई वे हूँ ....
लोग टायर और आग लेकर मेरी तरफ जा रहे हैं ,
कहते हैं - जी टी रोड को बंद रखना है ....
तबतक
जबतक हमारी मांगे पूरी नहीं होती ।
बेटा ! तू क्या किसी और बस्ती के हो ?
मैं बोला नहीं मैं तो यही रहता हूँ ।
वह बोली - भले दीखते हो ।
मैं तो शिव बाबा से प्रार्थना करती हूँ ......
यह तो जनम जा ही रहा है लेकीन .....
अगले जनम में हमें हाई वे न बनाना ॥
आपने सुनी एक बेजुबान की जुबान ॥
हम स्वयं को प्रभु के सबसे नजदीक समझते हैं लेकीन हैं .....
कितने दूर ----
हमसे तो वे अच्छे हैं जो बिन जुबान हैं ॥
आज इतना ही
=== अभी नहीं सुनते ना सही ====
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