Sunday, December 26, 2010

कौन समझता है ?

** प्रभु सब के ह्रदय में हैं ----
गीता - 10.20 , 18.61

प्रभु तो हम सब में बसे हुए हैं .......
लेकीन ......
कभीं क्या हम भी उनमें बसते हैं ?
इस बात को कौन समझता है ?

जिसको भी इस बात की भनक पड़ी की .....
वह प्रभु में बसा हुआ है .....
उसके अन्दर अहंकार का ज्वालामुखी फूट पड़ता है ,
फिर .....
इंसान को इंसान नहीं समझता -----
जीव को जीव नहीं समझता ------
वह स्वयं को प्रभु बनानें की कोशीश में फस जाता है
या .....
कुछ दिन अनजानें की तरह ....
हम सब में ......
मौन स्थिति में रह कर फिर ........
कब ----
कहाँ ---
कैसे ---
अपने शरीर को छोड़ जाता है
ऐसे .....
जैसे कुछ जीव ....
अपनी त्वचा को छोड़ जाते हैं ॥

प्रभु में कुछ घड़ी गुजारनें का .....
अभ्यास करो ....
चाहे ----
तन से
या
मन से
यह आप को ....
परम सत्य में होनें का .....
बोध करा देगा ॥

==== ॐ ======

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