Sunday, December 5, 2010
सुननें की कोशीश ---------
सुनना
ही क्या ध्यान नहीं ?
लोग कहते हैं -----
प्रभु बहुत निर्दयी है ....
प्रभु कोईसा नहीं करना चाहिए था ....
प्रभु ऐसा क्यों करता है ......
अभी इस बिचारेनें देखा ही क्या था ....
आखिर ऐसा करनें से प्रभू को क्या मिला होगा ?
ऐसे अनेक प्रश्न समय काटनें के साधन बन चुके हैं और .....
यह सोच हमें अपनी विरासत में मिलती है ,
क्या आप इस बात को समझते हैं ?
यदि कोई यह कहे की .......
यदि ऐसा होनें का कारण मालूम भी हो जाए तो क्या के होगा ,
फिर देखना वहाँ इक्कठे लोग
आग के गोले की तरह दिखनें लगते हैं ।
प्रभु और मनुष्य का क्या सम्बन्ध है ?
बच्चा जब गर्भ से बाहर आता है तब से उस समय तक के
उसके जीवन पर आप ध्यान देना जब
वह स्वयं भी पिता बन जाता है ,
आप को यकीनन मालूम हो जाएगा की
प्रभु और मनुष्य का क्या सम्बन्ध है ?
लेकीन एक अड़चन है ------
हम इस अतिशयोक्ति के मरीज हैं की .......
मैं और मेरा बेटा ऐसा नही जैसे ----
हमारे पड़ोसी हैं और उनका बेटा है ; हमारी यह अबोध की धारणा
हमें कहीं भी अहीं रुकने देती और हम
कटी पतंग की तरफ भागते फिरते हैं और बनावटी ढंग से
यह दिखाना चाहते हैं की .....
मेरे जैसा प्रभु कोई और को बनाया ही नहीं ।
हम जब स्वयं की पीठ थोक कर बैठते हैं तब काश उस स्थान पर
कोई टूटा - फूटा शीशा होता
जिस से हम अपनी तश्बीर को भी देख पाते लेकीन आज तक तो ऐसा हुआ नहीं ।
वह कुछ करनें के पहले कुछ कहता भी है
लेकीन .......
सुनता तो वह है जो उसके साथ हो , जो स्वयं को खुदा समझता हो ,
वह खुदा की आवाज को भला
कैसे सुन सकता है ?
एक घटना इस सम्बन्ध में :------
स्वामी योगानान्दजी महाराज बीसवी शताब्दी के मध्य में ठीक आजादी के बाद अमेरिका में
एक छोटा सा प्रवचन दे रहे थे । लगभग पांच मिनट बोले और चुप हो गए ,
आँखें बंद कर ली और धीरे से बोले
जैसा प्रभु हम सब से रोजाना बोलता है ........
मित्रों अब आप लोग जा सकते हैं .....
मेरे को चुप रहनें का आदेश मिल चुका है और ....
शायद कुछ घड़ी में मुझे यह स्थान छोड़ना भी है ....
इतना सा इशारा को समझनें वाले
न के बराबर थे और सब लोग उठे और चले गए ।
कहते हैं ......
स्वामीजी कई दिनों तक वैसे ही बैठे रहे प्राण रहीत स्थिति में
लेकीन देखनें से ऐसा लगता था ....
अभी बोलनें ही वाले हैं ॥
हम आप तो जबतक बच्चा रोये न तबतक उसे दूध नहीं देते फिर .......
प्रभु की आवाज को कैसे सुन सकते हैं ?
आगे फिर मिलेंगे यदि प्रभु की कृपा रही तो .......
==== कोशिश करना =====
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