Sunday, December 12, 2010

सुननें वालों का अभाव है ------

चलो देखते ही हैं ......


ठीक 06 दिनों के बाद आज मिला है हम सब को यह
रवि वार आगे अगला रवि वार किनको - किनको
देखनें को मिलता है , यह बात तो
विज्ञान भी नहीं जानता ।

आधुनिक विज्ञान के जनक कहे जाने
वाले सर आइजेक न्यूटन एक बार समुद्र के किनारे सुबह - सुबह
सैर कर रहे थे । घूमते - घूमते उनकी
नजर एक ब्यक्ति पर पड़ी जो बार - बार समुद्र की ओर आता ,
नीचे झुकता और पुनः समुद्र की ओर पीठ कर लेता था ।
वह ब्यक्ति समुद्र के जल को एक चम्मच में लेता और फिर पीछे हो लेता , न्यूटन काफी देर
तक देखते रहे और जब उनसे न रहा गया तब
बोल पड़े .....
क्या आप बतायेगे
की यह क्या कर रहे हैं ? वह ब्यक्ति बिना परवाह किये अपना काम करता रहा ।
न्यूटन को कुछ अजीब सा लगा , वे पुनः अपने प्रश्न को दुहराया ।
उस ब्यक्ति नें इशारा करके न्यूटन को अपनें पास बुलाया और बोला -----
देखते हो यहाँ मैं एक छोटा सा
गड्ढा बना रखा हूँ । इस पानी को गड्ढे में डाल रहा हूँ ॥
न्यूटन कहते हैं ----
तुम ऐसा क्यों कर रहे हो ?
वह बोला .....
मैं इस समुद्र को इस गड्ढे
में उतारना चाहता हूँ , और तब यह समुद्र - समुद्र न रह कर एक रेगिस्थान
हो जाएगा और तब ......
उस पर हम खूब मजा लेंगे ॥
न्यूटन सोचे - हो न हो यह पागल हो ,
लेकीन ऐसा लगता तो नहीं , चलो इस से एक बात और पूछ लेते हैं ---
न्यूटन बोले ----
क्या ऐसा संभव है ?
उस ब्यक्ति नें हसा और खूब हसा और बोला -----
तुम क्या कर रहे हो ?
क्या तुम प्रकृति को अपनी किताबमें कैद नही करना चाहते ?
न्यूटन के पास कोई जबाब न था , वे उसे सलाम करके चलते बनें ।

मेरे प्यारों जो लोग पिछले रविवार को थे उनमें से कुछ आज हम - आप के साथ नहीं है .....
अगले रविवार को हममें से न जानें कौन - कौन अनुपस्थित हो जाएँ तो हम सब भी
मिल कर समुद्रों के समुद्र .......
परम समुद्र .......
परमानंद ......
प्रभु .....
श्री कृष्ण से अपनें - अपनें अन्तः कर्ण को भरनें का ....
क्योंकि यहाँ सबका वर्तमान दो अज्ञेय के मध्य का एक पड़ाव सा है जो एक भ्रम सा लगता है और ...
जो पलक झपटे ही अब्यक्त हो जानें वाला है ॥

आज तो बश इतना ही .....

यदि रहे तो कुछ और अगले रविवार को ----

==== हे ! प्रभो =======

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