Monday, December 13, 2010

क्या कभी सोचा भी है ?



विज्ञान कह रहा है :
** कुछ पशुओं की प्रजातियाँ लुप्त हो रही हैं ..........
** कुछ पंक्षियों की प्रजातियाँ लुप्त हो रही हैं .........
** कुछ बनस्पतियां लुप्त हो चुकी हैं और कुछ लुप्त हो रही हैं ......
लेकीन बिज्ञान यह नहीं कहता की :
# कुछ इंसानों की भी प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं और कुछ लुप्त हो रही हैं ......
मेरा अनुभव कहता है -------
इंसानी समाज में एक ऎसी घटना घट रही है जिस से इंसान , इन्सान नहीं
इन्सान के रूप में कुछ और होता जा रहा है ,
वह घटना है .......
पृथ्वी पर अन्य जीवों में तो नहीं लेकीन इंसानों में माँ की ------
संख्या हर दिन कुछ कम हो जा रही है ॥
माँ क्यों कम हो रही है ?
मेरा तर्क शायद आप को न भाये लेकीन यह तर्क नहीं यथार्थ है ।
पशु , पंक्षी एवं अन्यों में आज से लाखों वर्ष पहले जैसी माएं थी ठीक उसी तरह आज भी हैं लेकीन ....
ज़रा इंसानों की आज की माओं पर एक नज़र डाल कर तो देखिये और यदि आप की उम्र पचास
साल से ऊपर की हो तो आप स्वयं अपनें गाँव - शहर की माओं पर नज़र दाल कर भी देखना ,
आप को स्पष्ट हो जाएगा की माओं की नश्ल बदलाव के साथ साथ लुप्त भी हो रही है , ऐसा
इस लिए हो रहा है ..........
[क] आज की मिलाएं बच्चा पैदा करनें में कोई रूचि नही रख रही हैं और यह मनोविज्ञान उनके
अन्दर के रसायनों में परिवर्तन ला रहा है
और ......
यदि इस मनोविज्ञान की स्त्री माँ बन भी जाए तो वह भारतीय माँ नही बन सकती ॥
[ख] आज शत प्रतिशत बच्चों का जन्म हस्पतालों में हो रहा है जहां जन्म देनें वाली स्त्री को
प्राकृतिक प्रशव पीड़ा से नहीं गुजरना पड़ता , उनको चिकित्सक लोग बेहोश करते बच्चे को
गर्भ से निकाल लेते हैं ।
इस स्थिति में दो बाते एक साथ घटित होती हैं -----
[ख-१] माँ बननें के बाद भी उस स्त्री के अन्दर के माँ के रसायन नहीं आते और वह माँ मात्र शब्दों में
होती है ।
[ख-२] माँ बनी स्त्री के अन्दर प्रशव पीड़ा की अनुपस्थिति के कारण जो हारमोंस
दूध पैदा करते हैं , वे कमजोर रह जाते हैं ,
फल स्वरुप ऎसी स्त्रियों में स्तन - कैंसर होनें की
गुंजाइश अधिक होती है ।
आपनें देखते ही होंगे ------
आज के बच्चे माँ को यार कह कर बुलाते हैं
आप अपने सीने पर अपना हाँथ रख कर सोचना ज़रा की ------
आज माँ और बच्चे में कहीं ममता दिखती है जो बिन स्वार्थ हो ?
क्या बेटा या बेटी का दिल माँ के सामनें खुला रहता है ?
क्या बेटा - बेटी और माँ के बीच कोई पर्दा नही रहता ?
भारत चल रहा है यूरोप बननें लेकीन ऐसा दिख रहा है -----
कहीं ऐसा तो नहीं की .....
धोबी का कुत्ता ......
न घर का .....
न घात का .....

आज इतना ही ----
इस सम्बन्ध में कुछ और बातें अगले अंक में
अब तो सोचो

1 comment:

श्याम जुनेजा said...

क्यों दुखती रगों को छेड़ रहे हैं .. आपकी इस बात में दम लगता है "माँ बनी स्त्री के अन्दर प्रशव पीड़ा की अनुपस्थिति के कारण जो हारमोंस
दूध पैदा करते हैं , वे कमजोर रह जाते हैं , " बाकि आज के बच्चे माँ को यार कह कर बुलाते हैं तो इसमें बुरा क्या है ? समाज के गणित नें जितने रिश्तों के जाल बुन रखे हैं सबके सब नकली ही तो हैं असली रिश्ता तो सच्ची सुच्ची यारी का ही होता है