Monday, October 4, 2010
इनके दर्द को .......
[क] पंख कटे पंछी की दर्द को -----
[ख] बेसहारा अनाथ छोटे से बच्चे की दर्द को -----
[ग] बेसहारा एक बुजुर्क की दर्द को जो वह अपनें झोपड़े में कराहता रहता है -----
[घ] एक नाविक की दर्द को जिसकी एक छोटी सी नाव अभीं- अभीं डूबी है -----
[च] उस माँ की जिसका नवजात शिशु अभी - अभीं दम तोड़ा हो -------
ऎसी अनेक घटनाएँ हम रोजाना देखते हैं , लेकीन ------
इन पर हमारी आँखें , हमारे कान और हमारी सम्बेदाना क्यों नहीं टिकती ?
क्या हम इंसान से पत्थर हो चुके हैं , या .....
क्या हमारी इन्द्रियाँ एवं ह्रदय अपना रुख बदल चुके हैं ॥
===== कुछ तो सोचो ======
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