Friday, October 15, 2010
वह दर्द भरी कराह , आज भी गूँज रही है
पिछले अंक में आप नें देखा :------
एक भारतीय माँ अपनें पुत्र की याद में कैसे सिसक रही थी ,
अब आगे ---------
अब चुनाव के दिन गुजरे कई दिन हो चुके हैं , उधर लोगों का आना जाना न के बराबर ही है ।
कभी - कभी एक - दो ट्रेक्टर जरूर गुजर जाते होंगे ,
लेकीन उस गंजे झोपड़े की ओर किसकी नजर
मुडती है ?
एक दिन एक नौजवान फकीर उस रास्ते से हो कर गाँव की ओर जा रहा था ,
अभी कुछ ही कदम आगे गया होगा ,
एकदम पीछे वापिस आगया , उस झोपड़े की ओर , मानो जैसे कोई चुम्बक
उसे वापिस खीच लिया हो ।
फकीर उस झोपड़े में झाँक ही रहा था की
एक आवाज सुनाई पड़ी ......
बेटा ! तूनें इतना इन्तजार कराया ? चलो देर सबेर ही सही , ठीक समय पर आया है ।
फकीर तो घबडा गया और चारों ओर देखनें लगा की आवाज कहाँ से आ रही है ?
जब कहीं कोई न दिखा तो पुनः वह फकीर झोपड़े में झाँकने लगा , अन्दर तो कुछ दिख नही रहा था ।
फकीर हिम्मत कर के अन्दर प्रवेश किया
और देखा -------
एक अस्सी साल की झुकी हुई औरत , होगा उसका लगभग बीस - पच्चीस किलो वजन , एक कम्बल में
सिमटी पड़ी थी । ऐसा लग रहा था मानो कई दिनों से उसनें खाना तो दूर रहा पानी भी न देख पाई थी ।
फकीर की आँखें भर आई थी ।
फकीर वहाँ से उस पास वाले गाँव में जा कर सारी दास्ताँ वहाँ के लोगों को सुनाई ।
लोग उस बुजुर्ग महिला
को प्यार से माँ कहते थे , सभी लोग उस झोपड़े के पास आये और देखनें लगे
की अभी श्वास चल रही है या ...... ।
वह तो रात में ही अपना दम तोड़ चुकी थी ।
फकीर जब उस आवाज की बात लोगों को बताई तो लोग दंग रह गए और फकीर को बताया की ......
आप जैसा इनका भी बेटा था , वह आवाज कही और से नहीं आ रही थी , वह ,
उसकी आत्मा की थी ॥
==== ऐसा भी घटित होता है =====
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आज का दिन
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