Saturday, October 16, 2010
अपनें जीवन को कौन जी रहा है और ...... ?
अपनें जीवन को कौन जी रहा है
और .....
कौन ढो रहा है ?
आप संसार में अच्छी तरह झांकें , बहुत मजा आयेगा , यहाँ तीन तरह के लोग दीखते हैं :
[क] कुछेक अपनें जीवन को जी रहे हैं -----
[ख] कुछ अपनें जीवन को अपनी पीठ पर ढो रहे हैं -------
और कुछ ......
[ग] अपनें जीवन को किसी और के पीठ पर लादकर साथ साथ मुस्कुराते हुए
मटक - मटक कर चलते हैं ....
मनुष्य के अलावां अन्य सभी जीव अपनें - अपने जीवन को जीते हैं लेकीन मनुष्य क्या कर रहा है ,
यह बात आप स्वयं देखें ।
एक आदमी अपनी तीन - तीन तस्वीरें साथ ले कर चलता है :
[क] एक वह तस्वीर है , जैसा वह है -----
[ख] एक वह तस्वीर है जैसा लोग उसको समझते हैं ----
और ......
[ग] तीसरी वह तस्वीर है , जैसा वह सोचता है की लोग उसे जानें ।
इस प्रकार मनुष्य अपनी तीन - तीन तस्वीरों के साथ स्वयं भ्रमित रहता है
और ....
कभी ऐसा पल नहीं आता जबकि उसके माथे का पसीना सूखता हो ,
बिचारा ! आदमी ------
दिन को रात समझ कर जीनें वाला .........
रात को दिन समझ कर जीनें वाला ........
सत को असत बना कर जीनें वाला ........
असत को सत बना कर जीनें वाला .......
क्या कभी चैन से जी सकता है ?
==== ॐ ======
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यह भी एक नज़ारा है
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