Wednesday, October 20, 2010
यहाँ कैसे चलें ?
प्रभु हमें दो पैर दिए हुए हैं ,
एक जब आगे चलता है तो दूसरा उसे देखता रहता है ।
ऐसा कौन होगा जो चलता न हो ?
ऐसा कौन हो सकता है
जो यह समझता हो की -----
जब एक पैर आगे निकलता है तो दूसरा उसे देखता रहता है ?
आगे निकला पैर जिस दिशा में निकला है , आगे , वह यह सुनिश्चित करता है की .....
जीवन - धारा का रुख क्या है ?
धार के साथ बहनें वाला पत्थर ,
एक दिन शिव लिंगम बन कर किसी मंदिर में पहुँच जाता है
और धार के साथ संघर्ष करता हुआ पत्थर .....
रेत बन कर दरिया के तह में बैठ जाता है ।
जीवन संघर्ष का क्षेत्र नहीं है , यह परम आनंद का बाग़ जैसा है ,
जिसमें कोई परम आनंद को
अपनें में रखे घूम रहा है ।
जीवन को यदि उस परम आनंद को समर्पित करके जो जीता है ....
वह इस संसार का द्रष्टा बन कर स्वयं भी परमानंद हो जाता है ॥
क्या पता कल क्या हो क्या न हो ......
क्या पता कल के लिए जो सोचा ,
वह करनें के लिए मौक़ा मिले या न मिले ......
क्या पता कल जिस से मिलना है ,
उस से मिल पायें या न मिल पायें .....
क्या पता कल हम रहें या न रहें ,
तो क्यों न .....
अभी इस घड़ी उसमें बिताएं
जो .....
कल भी था ....
आज भी है ....
कल भी रहेगा ...
और तब भी रहेगा , जब ....
उसे देखनें वाला कोई न होगा ----
उसे समझनें वाला कोई न होगा ॥
===== हर पल उसमें गुजरे ======
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