Friday, October 1, 2010

उनकी बात


त्रेता युग में श्री राम अवतरित हुए , उपदेश देनें के लिए नहीं ........
द्वापर में श्री कृष्ण आये , मात्र गीता - उपदेश के लिए नहीं ...........

श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहते हैं अर्थात वह
जो कर के दिखाए की -------
एक पुत्र कैसा होना चाहिए .....
एक पति कैसा होना चाहिए .....
एक राजा कैसा होना चाहिए .....
एक भाई कैसा होना चाहिये ......
और एक इंसान को कैसा होना चाहिए ?

श्री कृष्ण यह दिखाए की ........
प्रेमी की मर्यादा क्या है ?
पुत्र की मर्यादा क्या है ?
मित्र की मर्यादा क्या है ?
और एक सांख्य - योगी को क्या करना चाहिए ?

हिन्दुओ के दो अवतार एक अयोध्या के राज महल में ,
सरयू नदी के किनारे और दूसरा ------
जमुना नदी के किनारे मथुरा में असुर राजा के महल में बनें कारागार में ॥
एक अपनी पहचान दिखाया , सागर के अन्दर एक द्वीप पर युद्ध
करके और दुसरे ------
अरब सागर के तट से आ कर हिमालय की घाटी में कुरुक्षेत्र में एक
परिवार के दो भाइयों के मध्य हो रहे
युद्ध में एक द्रष्टा के रूप में अपनें ही मित्र अर्जुन के सारथी के रूप में , अपनी सांख्य - योगी की पहचान को
दिखाया ।
आप श्री राम के मुह को देखिये और श्री कृष्ण के मुह को ,
एक लगते हैं जैसे कभी हसे ही न हों और
एक लगते हैं जैसे
हसी के प्रतिमूर्ति हों ।
भारत में दो अवतार और दोनों का सम्बन्ध युद्ध से रहा है और भारत
एक ऐसा देश है जिसको
गुलामी का सबसे अधिक अनुभव है । हम युद्ध नहीं करते ,
हमारे भगवान् युद्ध के लिए ही
अवतरित होते रहे हैं , कैसा है यह बिरोधाभाष ?
कहते हैं श्री राम की अयोध्या सरयू में जल समाधी ले कर अपने को
समाप्त कर दिया था और ------
द्वारका अरब सागर में जल समाधि ले कर अपनें को समाप्त करदिया था ,
आखिर इन दोनों पवित्र तीर्थों
को क्या हुआ की दोनों जल समाधी ले लिए , कुछ तो हुआ ही होगा ?
ऐसे तीर्थ जहां श्री राम और श्री कृष्ण जैसे अवतार रहे हों , वह तीर्थ
जल समाधि ले कर अपनें
को समाप्त किये हों ,
बात कुछ खटकती जरूर है ।
बात बहुत ही सीधी है ---------
यहाँ के लोग जो पानी पीते है वह अहंकार का शरबत है , यहाँ के लोग
ह्रदय से झुकना नहीं चाहते ,
समर्पण की ऊर्जा यहाँ के लोगों में नहीं बह पाती , यहाँ के लोग
अपनें सभी द्वारों को बंद करके
रखते हैं की कही कोई अच्छी बात
किसी द्वार से अन्दर न प्रवेश कर सके ।
गीता , उपनिषद् समर्पण का उपदेश देते हैं , भक्ति - योग का प्रारंभ भारत में हुआ ,
लेकीन यहाँ के ऋषि जब देखिये श्राप ही देते रहे हैं ,
श्राप देनें की ऊर्जा अहंकार की ऊर्जा है ॥ ऋषि और अहंकार , दोनों एक दुसरे में निवास
करते हों , बात एक दम बिपरीत हैं ।
यहाँ श्री राम , श्री कृष्ण जैसे अवतार आते रहते हैं , हमें रूपांतरित करनें के लिए
लेकीन हम उनको ही
अमनें जैसा बनानें का प्रयत्न करते रहे हैं ।
कौन सुनता है , उनकी बात को ?

===== श्री राम =====

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