बहुत पहले मैं लिखा था -----
जो जिसमें जिया हो और उसे गाया हो , वह है ऋषि , और .....
जो बिना जीये गाया हो , वह भी किसी चाय की दूकान पर ,
वह है आज का कवी ॥
ऐसे लोग गायत्री का अर्थ करते हैं जिनके होठो पर पल भर के लिए भी गायत्री कभी नहीं आई ॥
जो गायत्री का सम्मोहित अर्थ कर रहे हैं ज़रा उनके जीवन को देखना ॥
शायद ही कोई ऐसा हो - दार्शनिक , जो कबीर के दोहों पर अपना मत न दिया हो , लेकीन
यह भी सत्य है की , उनमें से कोई भी एक दिन भी कबीर जैसा जीवन नहीं जिया होगा ।
हमनें किसी दार्शनिक का प्रवचन पढ़ा था , वे कबीर की बात ----
निंदक नियरे राखिये ...... पर अपना बिचार प्रकट किया था , प्यारा तर्क था ,
मन के मनोरंजन के लिए
उत्तम था लेकीन उसमें आत्मा न था , था वह निर्जीव क्योंकि ......
लिखनें वाले दार्शनिक का जीवन कबीर से कोसों दूर था , यह मैं स्वयं देखा हूँ ॥
कबित और नानक एक समय में थे । नानक पंजाब में थे जहां सूफियों की उर्जा थी
और कबीर थे -
काशी में जहां पांच निर्वाण प्राप्त योगियों की आत्माएं हर पल रही हैं जो .....
साधकों का मार्ग दर्शन करती हैं ॥
कबीर जी कभी नानक के बारे में नहीं बोला और -----
नानकजी कभी कबीरजी के बारे में नहीं बोला ---
बोलना क्या था , वे दोनों एक के दो रूप जो थे ॥
कहते हैं .....
एक बार कबीर जी के पास तीन दिन नानकजी रुके रहे , अपनी पूरी की यात्रा के दौरान , भक्तों को
यह आशा थी की दोनों की बातों को सुनेगे लेकीन ऐसा मौक़ा न मिला ।
नानक जी चौथे दिन उठे कबीर जी को देखा , दोनों की आँखें भर आई और नानक जी आगे चल पड़े ।
कबीर के चेलों ने पूछा - गुरूजी क्या बात थी , आप लोग कुछ बात - चित नहीं की ?
कबीर जी बोले - बावले ! जो उनको कहना था कहा , जो मुझे कहना था मैं कहा , दोनों एक दूसरे की बात
को सूना भी , यदि तू न सुन पाया तो मैं क्या करूँ ?
बोलना , लिखना एक कला है जिस से ----
मनुष्य के जीवन में नहीं झांका जा सकता ॥
पहले बनो , फिर गाओ ......
पहले जीवो , फिर लिखो .....
===== एक बार फिर ======
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