Tuesday, October 26, 2010

आखिर ऐसा क्यों ?

प्रोफ़ेसर आइन्स्टाइन कहते हैं :-----

देखते तो सभी हैं जिनके पास आँखें हैं लेकीन ........
देखी गयी सूचनाओं पर ह्रदय से सोचनें वाले न के बराबर हैं ॥
बीसवी शताब्दी में विज्ञान को एक नए रंग में रंगने वाले वैज्ञानिक की बातें ऎसी हैं जैसे :-----
कोई स्थिर - प्रज्ञ बोल रहा हो ॥

मेरी शिक्षा काशी और प्रयाग में हुयी थी , काशी में जहां मैं था ------
उसके सामनें गंगा और उस पार काशी नरेश का महल दिखता था ।
बाएं तरफ थोड़ी दूरी पर अस्सी घाट और दाहिनी ओर काशी विश्वविद्यालय था ।
मेरे चारों ओर मठ थे और गंगा के किनारे सुबह - सुबह साधुओं के मुलाक़ात होती ही रहती थी ।
मुझे भी शौक था सूर्योदय के पहले गंगा - स्नान करनें का ।
मैं साधुओं से प्रायः पूछा करता था ----------
[क] आप का प्यारा कौन है , उत्तर में .......
# कोई अपनें गुरु का नाम लेता था ,
# कोई राम भक्त होता था ,
# कोई कृष्ण भक्त होता था और ....
# कोई शिव भक्त ॥
मेरा उनसे दूसरा प्रश्न होता था -----
क्या आप का प्यारा आप को आपके स्वप्नों में भी दिखता है ,
सीनें पर हाँथ रख कर बताना ?
आज तक कोई ऐसा न मिला जिसका उत्तर - हाँ हो ॥
हम जिससे बहुत प्यार करते हैं
उसे स्वप्न में क्यों नहीं देख पाते ?
सीधी सी बात है -----
जब उस स्तर का प्यार हो तब न ॥
आज से आप प्रयोग करना प्रारम्भ कर दें -
अपनें प्यारे को अपनें स्वप्न में लानें के लिए और ---
यह अभ्यास आप को परम प्यारे से मिला सकता है ॥

==== ऐसा करो तो सही ======

No comments: