Friday, October 8, 2010

हम अंधे बहरे हो रहे हैं


यह बात मैं नहीं , वैज्ञानिक कह रहे हैं --------
वैज्ञानिक कह रहे हैं ........
बिल्ली ----
चूहे -------
एवं अन्य जीव - जंतु के पास पांच ज्ञानेन्द्रियों की जो क्षमताएं ......
प्रकृति से मिली हुयी हैं , वह शत प्रतिशत वैसी की वैसी हैं ,
लेकीन मनुष्य 1200 में से मात्र 400 अर्थात केवल एक तिहाई क्षमता वाला है ।
प्रकृति मनुष्यों के ज्ञानेन्द्रियों की क्षमताएं अन्य जीवों से लगभग तीन गुना अधिक दिया है ,
लेकीन मनुष्य क्यों इन क्षमताओं को खोता जा रहा है ?
मनुष्य के अन्दर कहीं न कहीं कुछ ऐसा है की .....
वह यह सोचता रहता है की ...
मैं परमात्मा हूँ , लेकीन अपनें अन्दर परमात्मा की खोज की लहर
किसी - किसी में उठती है और जिनमें उठती है .....
वे परमात्मा तुल्य हो ही जाते हैं ॥
मनुष्य का अहंकार उसे ........
जानवर बना रहा है -----
बिशैला बना रहा है ------
ऊपर देखनें नहीं देता , जबकी ......
अंतरिक्ष की यात्रा करता जरूर है , पर ......
उसकी सोच उतनी उंची नहीं हो पाती जितनी उंची उसकी ....
उड़ान होती है ॥

==== ज़रा सोचना =====

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