Prof. Einstein और गुरुवार रबिन्द्रनाथ टैगोरे
दोनों लगभग समकालीन ------
दोनों का निवास प्रकृति .........
दोनों गांधीजी के प्रेमी ,
और ......
** जब गुरुवार आखिरी श्वास भर रहे थे , तब एक उनका प्रेमी बोला ।
आप लगभग 6000 कबितायें गाया ,
प्रभु की याद में , अब जब जा रहे हो तो प्रभु को याद कर लो , क्या पता आवागमन से मुक्ति मिल जाए ।
गुरुवार अपनी आँखे खोली , दो बूंद आंसू के टपके और गंभीर भाव में बोले , तू क्या कह रहा है ?
मैं तो
प्रभु से कह रहा था , हे प्रभु , मुझे तुरंत वापस भेजना , मैं इस पृथ्वी की खूबशुरती से बिदा
नहीं लेना चाहता ।
गुरुवार दूसरी जो बात कही , वह है - मैं अभी तक तो गाया ही नहीं , अभी तो ताल बैठा रहा था ,
अब, जब कुछ गा सकता था तो बुलावा आगया , चलो फिर यदि आया तो उसे गाऊँगा
जिसे गाना चाहता हूँ ।
** आइन्स्टाइन जब आखिरी श्वास बार रहे थे तब लोग पूछे , यदि आप को दुबारा
जन्म लेना पडा तो क्या बनाना चाहेंगे ? आइन्स्टाइन कहते हैं ,
वैज्ञानिक से अच्छा होगा यदि मैं एक नलका ठीक करनेवाले के रूप में पुनः पैदा होऊं ।
एक कबी और एक वैज्ञानिक -----
एक कितना उदास है अपनें जीवन से , और .....
दूसरा इतना खुश है की , वह तुरंत वापस आना चाहता है , इस पृथ्वी की खूबसूरती में ।
एक प्रकृति को फार्मूला में बाधता रहा है
और .....
दूसरा प्रकृति जैसी है , उसे वैसे स्वीकार कर जी रहा है , और संतुष्ट है ।
आइन्स्टाइन जन्म से [ संन 1979] मृत्यु तक [ 1955] तक उस एक फार्मूला की तलाश में रहे ......
जिसके आधार पर प्रभु ब्रह्माण्ड की रचना की है , जो समझ पाए , उसे लिख नहीं पाए
और जो लिखा , उस से
उनको संतोष न मिला , यही है जीवन का रहस्य ॥
एक कबी और एक वैज्ञानिक , दोनों अपनें -अपने क्षेत्र में नोबल पुरष्कार के बिजेता और दोनों
अपनें - अपनें कार्यों में शिखर पर , आखिर वे लोग क्या बताना चाहते थे , जिसको बोल नहीं पाए ?
आप यदि कबी हैं तो गुरुवार के उस राज को खोंजे , और .....
यदि वैज्ञानिक हैं तो उस सूत्र को खोंजे जिसकी खोज आइन्स्टाइन की थी ॥
==== कुछ तो देखो , सुनों ======
No comments:
Post a Comment