Friday, October 22, 2010
सुन न पाया की .......
सुन न पाया था .....
उसके पैरों की आहात को
वह आयी , कैसे आई ?
और कैसे गई ,
कुछ समझ न पाया था ।
वह एक नहीं दो हैं ;
एक चौबीस घंटों में कमसे कम एक बार आगाह करनें आती ही है ,
और .....
एक जीवन में एक बात आती है और .....
ले जाती है उसे ....
जिस से हम हैं ,
लोग ऐसा समझते हैं ।
एक को हम नीद के नाम से जानते हैं , और .....
दूसरी को मौत कहते हैं ।
जो अपने नीद के पैरो की आवाज को सुन सकता है , वह .....
मौत की आहात को भी पकड़ सकता है ।
वह जो नीद को आते देख सकता है , वह कभी स्वप्न नहीं देखता ....
जो देखता है वह सत ही होता है ॥
बीसवी सताब्दी के मध्य में स्वामी योगा नन्द जी महाराज , अमेरिका में अम्बैसी के कार्यक्रम में थे ।
कुछ समय लोगों को आध्यात्म के सम्बन्ध में बताया और .....
एकाएक रुक गए , और बोले ----
आप लोग जा सकते हैं , अब मेरा बुलावा आ गया है .....
मुझे जाना ही होगा , आप सब -----
मुझे क्षमा करें , रुकना , मेरे बश में नहीं है ॥
लोग समझ न पाए लेकीन वे अपनी मौत के बारे में कह रहे थे ॥
ऐसे लोग अपनें को शीशे की तरह रखते हैं जिनसे ......
जो निकलता है , वह ....
परा प्रकाश ही होता है ॥
धन्य हैं ऐसे योगी ॥
====== एक बार कोशीश तो करें =======
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment